प्यारे दोस्तों,
एक प्रगतिवादी, प्रयोगधर्मी रचनाकार
होने के नाते
मैंने फिर एक
बार साहस बटोरा
है आपके सामने
कुछ नयी कवितायें
रखने का.
साहित्य-सेवा में
कुछ और क़दम...
आप सब विचारशील
* पाठकों
से प्रेमानुरोध है
कि कृपया दो
बार पढ़ें .. दूसरी
बार में आपको
नया, असली अर्थ
दिखेगा.
आपकी टिप्पणियाँ मेरे
लिए बहुत महत्वपूर्ण
हैं, उनका स्वागत
है!
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* ये जानते हुए भी
कि आपमें बहुत से
विद्वान् हैं, मैंने
इस शब्द का
प्रयोग जान-बूझ
कर नहीं किया
है. मेरा मानना
है कि मेरी
कविता विद्वत्ता का
विषय नहीं है,
ये विचारोत्तेजक है..
भावनाप्रधान है!
आपका,
-अमित
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आती हुई सर्दी
नवम्बर की किसी
रात को
न जाने कितने
बजे
सुपरमून धरती के
क़रीब
नीले लोहे के
लाल फूलों की बारिश
चन्दन की अगरबत्ती
से उठता उपलों
का धुआँ
लिनेन के कुर्ते
पर
काश्मीरी शॉल के
नीचे
कोई गीला-ठण्डा
कीड़ा
होने की बेचैनी
साँसें, आँखें, माथा, कनपटियाँ
सनसनाती सी
दिमाग़ में तैरते
विचार
दिल में थमे
अहसास
सब कुछ तो
है
पर कुछ भी
नहीं!