लो आज फिर घटा
घिर आई
टीस कोई भूली
फिर से उठ
आई
दिन महीने साल यूँ
ही भाग रहे
हैं
ज़िन्दग़ी किसी मोड़
पे ठिठकी सी
नज़र आई
आमों के दरख़्त
तो अब वीरान
पड़े हैं
कोयल मुझे इक
दिन कीकर पे
नज़र आई
नग़मे प्यार के सब भूल
चुके हैं
उजड़ी हुई कहानी
याद मगर फिर
आई
मेड़ों उगी दूब
भी अब सूख
चली है
दिल की बावड़ी
में बस काई
ही काई!
(Image from Google)
Bahut dinon baad aap ki kavita padhi-ek tees ubhar aayi.
ReplyDeleteजी, बहुत शुक्रिया आपका, इन्दु ma'am:)
Deleteआप जैसे मेरे पुराने पाठक मुझे बेहद ख़ुशी देते हैं!
प्रेम भाव बनाये रखियेगा
बहुत बढ़िया !
ReplyDelete'दिल की बावड़ी में बस काई !
पसंद करने लिए अनेक धन्यवाद, जोग साहब:)
Deleteदिन महीने साल यूँ ही भाग रहे हैं
ReplyDeleteज़िन्दग़ी किसी मोड़ पे ठिठकी सी नज़र आई
बहुत सुंदर पंक्तियाँ अमित जी.जिंदगी के कई रंग हैं इस कविता में.
आपको पसंद आई, मेरा लिखना सफल हुआ..
Deleteधन्यवाद राजीव भाई :)
Great poem.It so touching!
ReplyDeleteThank you Uppal ma'am:) Glad you liked:)
Deleteमेड़ों उगी दूब भी अब सूख चली है
ReplyDeleteदिल की बावड़ी में बस काई ही काई!
बहुत गहरे अर्थ के शब्द लिखे हैं आपने अमित जी !! जब दूसरे के ज़ख्मों को देखकर मन में पीड़ा न हो तो समझिये दिल की बावड़ी में काई लग ही चुकी है !!
पसंद करने के लिए शुक्रिया योगेंद्र भाई जी:) ख़ुशी हुई..!
DeleteVery sensitive lines... memories are like that.
ReplyDeleteGlad you liked, Indrani:) Thank you:)
DeleteLovely poem! What Indrani said is so true!
ReplyDeleteThank you Deepa:) Glad you liked:)
Delete
ReplyDelete"बदलते वक्त के साथ कभी-कभी यादों का कारवां गुजरता है इसमें कुछ खट्टी कुछ मिठ्ठी होती हैं उन्हीं यादों के दस्तावेज से निकली कुछ पल को बयां करती सुन्दर कविता।"
आपकी लिखी रचना "मित्र मंडली" में लिंक की गई है https://rakeshkirachanay.blogspot.in/2017/10/39.html पर आप सादर आमंत्रित हैं ....धन्यवाद!
पसंद करने के लिए धन्यवाद आपका भाई राकेश जी; और 'मित्र-मंडली' पर लिंक करने के लिए आभार!!
DeleteAlthough of topic to this blogpost...
ReplyDeleteI want to offer you very sincere congratulations with your birthday saturday on behalve of the 'family' of ABC-Wednesday.
Wishing you all the best in luck, love and happiness.
Thanks a lot dear ABC-W team:) Will be there soon:)
DeleteVery nice...
ReplyDeleteThank you Rajeev☺ Glad you liked💐
ReplyDeleteReminds me of the Bollywood song-
ReplyDelete"Woh bhooli dastaan lo phir yaad aa gayee, nazar ke saamne, ghata si chha gayee..."
Happy Diwali Amitji!
Great song! Waise hamari nazar ke saamne to hamesha hi ghataa hai☺ Kaala chashma rocks☺☺
DeleteThank you Anita 💐
बहुत दिनों बाद ... आज की गहरी और कडवी हकीकत को शब्द दिए ....
ReplyDeleteहस शेर दूर की बात कहता हुआ ...
Aap jaise sidhh-hast gazalgo ne mere seedhe-saade couplets ko 'sher' ka darja dekar meri kavita ka maan badhaya hai, Digamber sahab, shukriya:)
ReplyDelete'door ki baat' pakadne aur saraahne ke liye bhi dhanywaad:):)
lovely poem...nice
ReplyDeleteGlad you liked, Anamika, thank you:)
Deleteआदरणीय अमित जी ----- आपकी कविता का शीर्षक पढ़ा -- तो हैरान थी | कविवर की प्रतिभा को क्या कहए ''काई '' को भी नहीं छोड़ते ! पर ये काई बड़ी मन भाई | यादों में झांकता व्याकुल मन और यादों के रूप में कामनाओं की बावडी में काई -- किसका मन ना दुखायेगी | भाव प्रणव सुंदर सटीक रचना
ReplyDeleteआदरणीया रेनू जी, आप जैसे सुहृद पाठक जिनके मन को 'काई तक भाई' ही मुझे नया लिखने और कभी-कभी साहसिक प्रयोग भी करने की प्रेरणा देते हैं..
Deleteअनेक धन्यवाद!
best post best post for you
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