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Friday 23 November 2012

Monochrome:Grand old building

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सदमा...


कहाँ गए वो पल जो बेताबी से 
हमने साथ बिताए थे,
अब तो बस मायूसियों के 
लम्बाते हुए साए हैं।

सब काट ही लेते हैं दिन
शाम की उम्मीदों में,
हमारे हिस्से तो रातों को भी 
बस सिर्फ़ फ़ाके आये हैं।

रोज़ नया ग़म देती है 
तोहफ़े  में ज़िन्दगी,
अभी तो हम पुराने 
सदमों से उबर पाए हैं।  

Monday 19 November 2012

रेलगाड़ी


एक ट्रेन हूँ मैं,
बस चलती जाती .
स्टेशनों पे रूकती,
जंगल में खड़ी होती,
कभी रोक दी जाती .

या, एक स्टेशन हूँ मैं,
अपनी जगह स्थिर .
देखता रहता आती-जाती गाड़ियाँ,
मर्द-औरत, काले-गोरे, अमीर - ग़रीब,
बेशुमार मुसाफ़िर .

नहीं, चाय -कॉफ़ी वैंडर हूँ मैं,
पूरब से पश्चिम, उत्तर से दक्षिण 
गर्मी - सर्दी - बरसात 
यहाँ से वहाँ, वहाँ से यहाँ:
अनवरत, अन्तहीन !!


इसके साथ ये भी पढ़िए :  पटरियाँ 







Friday 16 November 2012

पटरियाँ

हम सब रेल की पटरियाँ:
दौड़ते समानान्तर 
मीलों - मील ज़िन्दगी भर ;

मिलते  हैं बस कुछ पल 
फिर से बिछुड़ जाने को 
हमेशा के लिए !


इसके साथ ये भी पढ़िए :  रेलगाड़ी 

Tuesday 13 November 2012

सुबह-2



किसी परिपक्व, सुशीला,
प्रेमिल, मजबूर माँ की तरह 
एक खीज भरी, फीकी,
सतही, निस्तेज मुस्कराहट के साथ,
जिसमें साफ़ झलकती है 
उसकी असहमति, विरोध और पीड़ा,
प्रकृति देती है 
ताज़ी हवा के कुछ झोंके 
जंगलों, पहाड़ों, खेतोँ और बाग़ानों से 
कहते हुए जैसे 
कि माफ़ तो कर नहीं सकती 
साफ़ दिल से 
जघन्य पापों को हमारे;
पर  मरने भी नहीं दे सकती 
आतंकी, आततायी, अपराधी 
बेटों को अपने!


प्रसंग: इस कविता की गहनता अनुभव कीजिये   सुबह-1  के साथ 
   


सुबह-1



रात भर के शोरीले  ताण्डव 
के परिप्रेक्ष्य में और भी वीरान लगती है 
दीवाली से अगले दिन की सुबह।

धुएँ  और कुहासे की 
मोटी चादर ओढ़े 
ख़ामोश, लाचार  देखती 
जैसे बीत गए 
बलात्कार के निशान।

बेशुमार आतिशबाज़ी से पैदा 
बेहिसाब चिन्दियाँ कागज़ की 
राख, डंडियाँ, खोल, रैपर्स, प्लास्टिक 
चारों ओर बर्बादी का मंजर :
बेख़बर सोये बेशर्म, उद्दण्ड व्यभिचारी !

प्रसंग : इस कविता का मर्म देखिये   सुबह-2   के साथ  

Sunday 11 November 2012

Abstract



Fiery walkways
Burning eyes
Arsenic days
Sulfuric stink
Hard-black thorns piercing body
Thick smoke stifling mind
Heavy grey stones suffocating heart
Satanic noise
Ghastly nights.

Where is the holy lake
Green banks
Dewy mornings
Blooming flowers
Leisurely days
Drizzling afternoons
Cider scent
Blissful silence
Pine winds
Sun kissed evenings
And pale moon nights?

I miss you!
Will you ever
Happen to me again?




Friday 9 November 2012

Thirsty on the bank..!

                                       "प्यास थी फिर भी तक़ाज़ा ना  किया 
                                        जाने क्या सोच के ऐसा ना किया ..."
I was thirsty though, yet never brought it to your attention...
don't know why..!

Wednesday 7 November 2012

Saturday 3 November 2012

...homecoming!

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Thursday 1 November 2012

Skywatch.. Laden!

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सीले हुए पटाखे...


मत सजाओ कागज़ के फूलों से,
इस से तो ये गुलदान सूने ही अच्छे हैं.

मत करो दिल्लगी मद्धम चराग़ों से,
इस से तो ये गलियारे अँधेरे ही अच्छे हैं.

फिर कहोगे बात कोई चुभती हुई सी,
इससे तो सिलसिले-बयान ख़ामोश ही सच्चे हैं.

क्यों दिखाते हो  चिंगारी मेरे अरमानों को,
इस से तो ये पटाखे सीले ही अच्छे हैं.

मत लगाओ हमदर्दी का मरहम बेमानी,
इस से तो ये ज़ख्म ताज़े ही अच्छे हैं.

क्यों करूँ दस्तख्वत इस्तीफ़े पे ज़िन्दगी के,
इस से तो ये कागज़ात कोरे ही पक्के हैं.