प्यारे दोस्तों,
एक प्रगतिवादी, प्रयोगधर्मी रचनाकार
होने के नाते
मैंने फिर एक
बार साहस बटोरा
है आपके सामने
कुछ नयी कवितायें
रखने का.
साहित्य-सेवा में
कुछ और क़दम...
आप सब विचारशील
* पाठकों
से प्रेमानुरोध है
कि कृपया दो
बार पढ़ें .. दूसरी
बार में आपको
नया, असली अर्थ
दिखेगा.
आपकी टिप्पणियाँ मेरे
लिए बहुत महत्वपूर्ण
हैं, उनका स्वागत
है!
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* ये जानते हुए भी
कि आपमें बहुत से
विद्वान् हैं, मैंने
इस शब्द का
प्रयोग जान-बूझ
कर नहीं किया
है. मेरा मानना
है कि मेरी
कविता विद्वत्ता का
विषय नहीं है,
ये विचारोत्तेजक है..
भावनाप्रधान है!
आपका,
-अमित
Image from Google
आती हुई सर्दी
नवम्बर की किसी
रात को
न जाने कितने
बजे
सुपरमून धरती के
क़रीब
नीले लोहे के
लाल फूलों की बारिश
चन्दन की अगरबत्ती
से उठता उपलों
का धुआँ
लिनेन के कुर्ते
पर
काश्मीरी शॉल के
नीचे
कोई गीला-ठण्डा
कीड़ा
होने की बेचैनी
साँसें, आँखें, माथा, कनपटियाँ
सनसनाती सी
दिमाग़ में तैरते
विचार
दिल में थमे
अहसास
सब कुछ तो
है
पर कुछ भी
नहीं!
बहुत सुंदर भाव.
ReplyDeleteपसन्द करने के लिए आपका धन्यवाद, राजीव:)
Deleteआपकी कविता सुपरमून सुंदर एवं भावपूर्ण है।
ReplyDeleteपसन्द करने के लिए आपका धन्यवाद, काजल:)
Deleteसुंदर
ReplyDeleteपसन्द करने के लिए आपका धन्यवाद, रूपम :)
DeleteI have been reading this poem, and leaving without comment, then coming back again to read this....I didn't leave a comment because I needed to think.....I may be way off what you mean but being a reader I have my rights....:P.....:D...I can reference it to the supermoon phenomenon on the face of it - the frenzy over it and the poet's indifference....it happens न जाने कितने बजे.....then, the rain - red flowers - embers? volcanic thoughts....or restlessness to give them shape and meaning....they seem calm like चन्दन but they burn.....the evident tranquility is just facade...there is tension underneath of अहसास....just like the supermoon is there but isn't there, the thoughts/emotions are there but they can evade, elude both the poet and the reader....
ReplyDeleteYou're bang on there, Sunaina, as expected:)
DeleteAs we all know a literary piece can be interpreted in more ways than one, but you have captured the essence..thank you:)
I would like to draw your kind attention to the juxtaposition of 'नीले लोहे के
लाल फूल' and 'चन्दन की अगरबत्ती/उपलों का धुआँ'..too!
I'm grateful for your interest, time and energy you spent on this:)
In fact readers'/critics' genuine reactions/feedback will decide the mode of my future writing..
There are more to come shortly and your kind patronage is requested:) A big thanks again:):)
सुन्दर रचना
ReplyDeleteपसन्द करने के लिए आपका धन्यवाद, ओंकार :)
Deleteएक ही शब्द के अनेक अर्थों को ढूंढती आपकी सुंदर भावपूर्ण कविता।
ReplyDeleteपसन्द करने के लिए आपका धन्यवाद, राही जी:)
DeleteI love it and as you said 'Sahas'; I salute your Sahas :)
ReplyDeleteHa ha:) Thank you Shams:) Please keep track..there are more 'sahasi' ones on their way..
Deletekaffee gambheer vichar hain Amit jee.. baichainee, or ummeed ka adbhut sangam laga mujhe
ReplyDelete"baichainee, or ummeed ka sangam".. you said it Prasad:) This is the gist:) Thank you, dear:)
DeleteLoved the way of presentation,very nice one.
ReplyDeleteThank you Jyotirmoy, for liking it:)
DeleteBeautiful!
ReplyDeleteThank you Madhusudan:) Glad you liked:)
DeleteBeautiful.
ReplyDeleteGlad, Rajesh! Thank you:)
Deleteअपनी wordpress ID से आपके ब्लॉग पर कमेंट नहीं कर प् रहा हूँ, इसलिए blogpost ID से कमेंट कर रहा हूँ.
ReplyDeleteपढ़ना तो दो बार से ज़्यादा ही पड़ा. पड़ेगा ही. गहरी बात सरसरी नज़र में पकड़ में ही नहीं आ सकती. और लिखने पर भी मजबूर कर दिया आपने!
फिर भी कह नहीं सकता कि जो समझ सका, वाक़ई बात उसके आसपास है या कहीं दूर किसी और छोर पर है. वैसे कविता और कला जो जैसा समझे, उसकी समझ पर है!
बिम्ब बड़े जतन से संजोये गये हैं. यक़ीनन गहरी बेचैनी है. पता नहीं कवि का इशारा इस तरफ है या नहीं, लेकिन इस दौर की विडम्बनाओं को कविता में महसूस किया जा सकता है.
देखने वालों को दिखते हैं नर्म नाज़ुक फूल, रंग उनका गर्मजोश खुशियों का है सुर्ख़,, लेकिंन हैं वह लोहे के, वह भी नीले लोहे के... नीला यानी सीली हुई और शायद 'भुतही' ठंड का रंग!
चन्दन की अगरबत्ती है, लेकिन धुआँ उपलों का दे रही है! इससे बड़ी विडम्बना भला और क्या होगी?
शाल 'बेशक़ीमती' कश्मीरी है, ज़ाहिर है कि ऊपर से बेहद ख़ूबसूरत दिखेगी, लेकिन अन्दर सिहरन किसी गीले ठंडे कीड़े के रेंगने की होती है!
दीखने, देखने और उसके होने में, उसके एहसास में कितना डरावना फ़र्क़ है.
कमाल कर दिया अमित जी आपने. और हाँ 'सुपरमून' से बात शुरू हुई है. यह दुनिया अपने-अपने 'सुपरमैन' की दीवानगी में खोयी हुई है.
--- क़मर वहीद नक़वी
आपको एक शानदार और लंबी टिप्पणी लिखने को 'मजबूर' कर दिया, मेरी कविता की सफलता का इससे बड़ा प्रमाण क्या होगा भला? मैं अभिभूत हूँ!
Deleteये सर्वविदित है कि आप एक निष्पक्ष आलोचक, टीकाकार और विश्लेषक हैं... अब आपकी कला / साहित्य मर्मज्ञता का भी मैं क़ायल हो उठा हूँ! (इसलिए नहीं कि आपने मेरे लेखन की प्रशंसा की है, बल्कि इसलिये कि आपने उसकी बहुत सुन्दर विवेचना की है.)
फूल, अगरबत्ती और शॉल के माध्यम से जो मैंने कहना चाहा था आपने उसे यक़ीनन हू-ब -हू पकड़ लिया है..
नीला-लाल, चन्दन-उपले, कश्मीरी और कीड़े के भीतर छिपे अपरम्परागत उपमान तथा उपमेयों का ग़ैर-पारम्परिक प्रतीकीकरण (सतही नहीं, गहन अर्थ सहित भी) आपने एक विलक्षण विद्वत्दृष्टि से पकड़ लिया जो कि आपकी विद्वत्ता का परिचायक है!
आपका तहे-दिल से शुक्रग़ुज़ार हूँ, नक़वी साहब, कि आपके कमेन्ट से उत्साहित हो कर मैं पिछले छः माह में लिखी अपनी सभी रचनाओं को प्रकाशित करने का साहस कर पाऊंगा...
हा हा :):) आपका 'सुपरमैन' सिर्फ़ एक (सन्दर्भहीन?) शब्द होने के बावजूद कितना कुछ बोल-बता जाता है:):) साधुवाद!!
God to see you writing again, for a long time you just posted pictures :D
ReplyDeleteThank you Mridula:) Please do drop in more often..there're more to come:)
DeleteThe juxtaposition of words, with different meanings has helped to shape the poem in a different way...the end effect is dreamy. You have a great way with words, Amit ji... wonderful!
ReplyDeleteThe attestation by poets like you gives me courage and strength to go! Thanks a whole lot, Maniparna:)
DeleteBeautiful! while reading the prologue, being the one not to do what I am told to do, I decided to read it JUST once. But,then being that one too who is flexible enough to bow down, I read MANY times..simply because of the sheer beauty of your words and their unfolding meaning! Excercising my reader's rights as Sunaina has said, along with her interpretation of a facade of tranquility and the underneath restlessness... which I second with, I also felt a longing, a search for aesthetic beauty and an cold angst too!In the दिमाग़ में तैरते विचार,
ReplyDeleteदिल में थमे अहसास .. these lines gave me a feeling of नीरव निःस्तब्धता. I found the poet to be in a restless acceptance with life!
Loved it.. am waiting eagerly for more :)
'restless acceptance', 'नीरव निःस्तब्धता'..Absolutely!
ReplyDeleteThank you so much for your generous words about the poem, I'm overwhelmed, Kokila!
I bank on you to be able to present more:)
एक बार मे ही लाजवाब ।
ReplyDeletePasand karne ke liye shukriya, Joshi ji:)
DeleteVery nice.. Wonderful to see you back writing poetry.
ReplyDeleteThank you Rajeev:) Glad you liked:)
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