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कुछ सहस्राब्दियों बाद
शैतान को फिर
से
ख़ुराफ़ात सूझी
लेकिन वो जानता
था
कि आदम और
हौव्वा
अब भोले नहीं
रहे
जो साँप और
सेब के
चक्कर में आ
जाएँ.
वो ख़ुद भी
शातिर हो चला
था
समय के साथ
सो अबकी उसने
सोचा
कि 'अक़्ल' तो
अभिशाप कम
वरदान ज़्यादा
सिद्ध हुई कालान्तर
में ;
क्यों न इन्सान
की
इसी अक़्ल से
एक ऐसा तोहफ़ा
बनवाया जाए
जो साबित हो सके
उसका
स्थाई चिरंतन नाश!
इस बार
वो कोई चांस
नहीं
लेना चाहता था
सो उसने
ख़ूब सोच समझ कर
प्लास्टिक पैदा कर
दिया
और लगा इंतज़ार
करने
अपनी योजना के
परवान चढ़ने का
कुटिल मुस्कान के साथ.
बस फिर कुछ
ही दशकों में
शनैः शनैः
उसके ज़हरीले दाँत
काले कुरूप होठों से
निकल कर दिखने
लगे
मुस्कुराहट
फैलती गई...
डेढ़ सदी ख़त्म
होते न होते
धरती बंजर होने
लगी
हवा विषाक्त
समुद्रों, नदियों, झीलों, झरनों
के दम घुटने
लगे
मछली, चिड़ियाँ, पशु
बेहिसाब मरने लगे
और अक़्लमंद इंसान
हाँफ़ते खाँसते
सिसकते बिलखते
धरती पर से
समस्त जीवन लुप्त
होना
देखता रह गया...
शैतान अट्टहास कर उठा
!!