अजनबी शहर की
बेदर्द भीड़ के बीच
कोई अपना सा लगा तो,
मैंने मीत कहा था.
बेगानी इस दुनिया में
जब दर्द बाँटता मेरे
सहलाता ज़ख्मों को,
मैंने प्रीत कहा था.
गिर-गिर के संभलने का
अहसास अनोखा था
छोटे से उस पल को,
मैंने जीत कहा था.
सूने दर पे मेरे
वो दस्तक अजीब थी
हल्की सी उस आहट को,
मैंने गीत कहा था.