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Friday, 28 August 2015

पत्थर


बर्फ़ सा गलता हूँ
मोम सा पिघलता
भीतर-ही-भीतर
बारिश सा बरसता..

पर पत्थर  हो गया हूँ मैं
बहता हूँ
टपकता
रिसता.. 

Wednesday, 26 August 2015

फिसल जाए… मचल जाये !


उदास शीशे  आँखें मेरी
मखमली किरक  सूरत तेरी
कैसे निकालूँ  फिसल-फिसल जाए!

लहू का फूल  दिल मेरा
रेशम की फाँस याद तेरी
कैसे उभारूं मचल-मचल जाये !!

Tuesday, 25 August 2015

शुक्रिया


बेज़ार होना
मुरझाने लगें अगर
फूल मेरे  क्योंकि
क़ाग़ज़ के नहीं हैं,
अल्फ़ाज़ पसन्द के अपनी
जो चाहे लिख लेना
मेरे सलाम में मगर 
शुक्रिया शामिल रखना!

Sunday, 23 August 2015

मेरा, मेरा.. मेरा !


ये सब मेरा है, ये सिर्फ़ मेरा
इसमें से कुछ नहीं दूँगा मैं
और  ये  तो   है  ही   मेरा ..

बटोरता हूँ सब जल्दी-जल्दी
इक लम्बे सफ़र की है तैयारी

आना मेरे दोस्तों, भाईयों सभी
माफ़ करके पुरानी  कहीसुनी
शानदार    विदाई    में    मेरी

देखना नए-नकोर कपड़े  मेरे
सिलवाया है एक क़फ़न मैंने
कई   सारी   जेबों   वाला … !


Thursday, 20 August 2015

इसरार


चलो जाने दो, सुनो
मुँह मत  फेरो मगर
नज़्म मेरी ताज़ी है
बासी अख़बार नहीं है!

Monday, 17 August 2015

सैलाब


कुछ धुँधलाई सी है
तड़पती  बर्क़
ग़र्द  की आँधी में,

बस मत छेड़ो अब
कुछ ख़ुश्क़ सा
हुआ जाता है नासूर,

कैसे बाँधोगे 
दर्द का सैलाब मेरे
अपने रुमाल में,

जो तोड़ चला
ये हद्दों को
फिर से अपनी!


Help:
बर्क़ = lightning        
नासूर = rotten wound   

Monday, 10 August 2015

सलीक़ा



                              प्यासे - सूखे होठों को
                            सिखाते हो पीने का सलीक़ा,
                             चलो अब फेंक दो प्याला
                             सुराही मेरे मुँह से लगा दो.

Image by google

Friday, 7 August 2015

haiga: आशनाई



'haiga' is a Japanese form of poetry in which a haiku is synchronized with a painting.
In modern times the use of a photograph is accepted in place of the traditional painting.
(please click on the picture for a better read)

गुदगुदी


नाख़ून मेरे
चुभने लगे हैं क्या
गुदगुदी में

Translation credit: GC
Fingers caress
A symphony of
Prickly notes

Thursday, 6 August 2015

गीत


अजनबी शहर की
बेदर्द भीड़ के बीच
कोई अपना सा लगा तो,
मैंने मीत  कहा था.

बेगानी इस दुनिया में
जब दर्द बाँटता मेरे
सहलाता ज़ख्मों को,
मैंने प्रीत कहा था.

गिर-गिर के संभलने का
अहसास अनोखा था
छोटे से उस पल को,
मैंने जीत कहा था.

सूने दर पे मेरे
वो दस्तक अजीब थी
हल्की सी उस आहट को,
मैंने गीत कहा था.

Sunday, 2 August 2015

शहर-1


सब दीवारें हैं यहाँ
चलती फिरती
या बस परछाइयाँ,
कोई इंसान नहीं.

ये शहर पत्थरों का है
या तिलिस्मात
छलावों का,
यहाँ भगवान नहीं.

Read शहर -2 here