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Tuesday, 31 July 2012

Sunday, 29 July 2012

उम्र..


न उम्र का अहसास
न बरसों का हिसाब.

पर देखता हूँ ये 
कि जश्नों के मुक़ाबिल,

जनाज़ों में ज़्यादह 
जाने लगा हूँ अब!


Translation:

Age...

Unaware of years,
( I'm) oblivious of (my) age.

Ah...but yes,
I notice that

attending funerals
is more frequent lately,
than bashes!



Thursday, 26 July 2012

Sky watch...over Naini lake!

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Wednesday, 25 July 2012

Movement in stones..

          A roadside panel on the flank of a hillock at The Mall, Mussoorie.

Sunday, 22 July 2012

शुक्रिया..


शुक्र है कि
साथ नहीं हो..

ज़िन्दा तो  हूँ
जुस्तज़ू,
और
इंतज़ार में.

मर ही  जाता
ख़ुशी से
जो मिल गए होते.



Translation:

I should be
rather thankful
that you’re
not mine...

I’m
at least alive
hopefully waiting.

For I would’ve died
in ecstasy,
if you were!


Friday, 20 July 2012

Sky watch...evening gloom


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                     Linked to NF Blo-Ma # 23                           

Tuesday, 17 July 2012

Goldfish...


I'm very safe though
in this sparkling crystal bowl
filled with temperature controlled
mineral water,
and being fed on 
carefully measured
couples of granules.

My admirers come 
dressed in
immaculate Armanis
or Victoria's Secrets(beneath),
wearing Chanel No5 
or Pour Homme.

But I'm tired of
this 20"x20" jar,
and its safe confinement.

I want to live..
Live life dangerously
in a river, lake or ocean.

Swim miles swiftly
in sweet or saline waters smartly,
hungry sometimes
and satiated at others.

Or being destroyed even
when I'm sluggish,
without regrets
whatsoever!
  

Monday, 16 July 2012

काश...


"जीवेम शरदः शतम"
किसकी तमन्ना है?
..मेरी तो क़तई नहीं!

काश मैं तितली होती,
भोर की किरण में पैदा.

दिन भर उड़ती आज़ाद,
खुली हवाओं में ताज़ी.

रंग-बिरंगे फूलों से खेलती,
छेड़ती, रस उनका पीती.

गाँव की होती तो, भोले बच्चों में,
शहर की तो, ख़ूबसूरत लड़कियों में,
और जंगली होती तो,
ज़मीन से ख़ुदाई तक के फ़ासलों में
समूचा दिन बिताती.
(मेरा पूरा जीवन!)

और शाम ढले गिर जाती
कृतज्ञ होकर
अस्तित्व के प्रति...

Saturday, 14 July 2012

Skywatch Over the Ganges..

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Friday, 13 July 2012

सुभोरूप दासगुप्ता का शोध कार्य...


प्यारे दोस्तों,
भारतीय ब्लॉगिंग की दुनिया में श्री सुभोरूप दासगुप्ता के नाम को किसी परिचय की आवश्यकता नहीं है. नि:संदेह वे एक उच्च  श्रेणी के लेखक हैं.
उनके ब्लॉग http://subhorup.blogspot.com/ के द्वारा हम सब उन्हें भली भांति जानते हैं. सुभोरूप की अद्वितीय लेखन शैली की सर्वत्र प्रशंसा की जाती रही है.
सुभोरूप की विभिन्न विषयों पर विवेचनात्मक व्याख्या, गहन अध्ययन और गहरी पकड़ उनके लेखन में सर्वथा दिखाई देती है.
उनकी भाषा न तो साधारण बोल-चाल की भाषा है और न ही पांडित्य प्रदर्शित करती हुई दुरूह, क्लिष्ट लेखनी है जिसे समझने के लिए पाठक को स्वयं एक विद्वान होना ज़रूरी हो.
सुभोरूप की भाषा परिष्कृत और परिमार्जित है और पाठकों के ह्रदय में सीधे उतरती है.
उनकी ताज़ा पोस्ट http://subhorup.blogspot.in/2012/07/hindi-poetry-blogs-blogging.html#comment-form हिंदी के ब्लॉगिंग कवियों पर आधारित है, और हमारे लिए उत्साह, हर्ष एवं सम्मान का विषय है.
श्री दासगुप्ता को प्यार से सब साथी सुभो नाम से पुकारते हैं, और उनके विषय में अधिक कुछ कहना मेरी सीमित क्षमताओं से परे की बात है. 
अपने और सभी हिंदी कवि साथियों की ओर से मैं सुभो को इस पोस्ट के लिए एक प्यार भरा धन्यवाद देता हूँ!

सुभोरूप दासगुप्ता के अन्य ब्लॉग इस प्रकार हैं:


Wednesday, 11 July 2012

F-55


He entered back room with she in arms. Softly shut door with a heel. One hand under shoulders the other draped through waist, carefully laid her on bed then undid blouse and removed sari. Looked down at her bare curves, smiled wryly, and rose up tiredly to fetch another mannequin to dress for evening window.

Sunday, 8 July 2012

बोन्साई..bonsai...


बोन्साई सा हूँ मैं,
समय मेरा दक्ष माली.
बढ़ने नहीं देता, जीने नहीं देता,
मरने भी नहीं देता.

टहनियाँ-शाखाएँ-पत्तियाँ,
यहाँ तक कि जड़ें भी
छांटता है, काटता है.

पीना चाहता हूँ
नदियाँ तालाब,
वो देता है मुझे
फ़क़त कुछ बूँद.

छूना चाहता हूँ
आकाश और पाताल,
वो क़ैद किये है मुझे
महज़ कुछ अंगुल में.

जिजीविषा मेरी
कसमसाती है,
उसकी घमंडी विजय
मुस्कुराती है.

ख़ूबसूरत हूँ बेशक़
और शायद कीमती भी..
..लेकिन ये असली मैं नहीं हूँ!

Translation:

I’m like a bonsai,
and the Time
my expert master.
It doesn’t let me grow,
breathe free or even die.

It keeps pruning
my leaves-branches-foliage,
and even trims
my roots too.   

My thirst
needs rivers and lakes
to be quenched,
it cruelly allows me
just a few drops.

I want to sway
in the skies
and rejoice in soil,
it has arrested me
within a meagre few inches.

My will-to-live
wriggles helplessly,
It smiles triumphantly
in its arrogant glory.

Yes, I AM elegant
and presentable,
perhaps carry
an expensive price-tag too..
..but this is NOT the real me!




Thursday, 5 July 2012

Rays from Paradise..

                          Plz click on the pic for an enhanced view :)

Monday, 2 July 2012

Words, silence and you..!



It’s been words, words..and more words...
hollow, meaningless, ponderous, futile, boring,
tiring, sucking, strangulating, killing...
hundreds and thousands of them...
they are only sounds
...not even voices.

And there is a void
behind them
an energizing peace
a noble silence
a rejuvenating blankness.

It comes to my rescue
as a fresh breather
and siphons life into me
...it is YOU!

A beautiful translation in Hindi by a blogger friend Anu...you'll be knowing her soon:)

शब्द....शांति .....और तुम.....

बातें बातें बातें....शब्दों के जाल....
खोखली बातें,बेमतलब की बातें...
भारी भरकम और निरर्थक बातें...
उबाऊ बातें...थकाऊ बातें.. 
घुटन भरी बातें,जानलेवा बातें....
सैकड़ों,हज़ारों बातें.
कोई संवाद नहीं....

और कहीं
एक अबोलापन 
एक शान्ति... जो ऊर्जा देती है
एक गहन शान्ति...
पुनर्जीवित करता सन्नाटा...

शांति...
जो मेरी रक्षा करती है
इन अंतहीन बातों से..
जो मुझमें जीवन का संचार करती है...
वो "तुम" हो...
तुम ही तो हो....




Sunday, 1 July 2012

क्यों..?


कभी भागता है
कभी भगाता है.

अक्सर मेरे सीने पे,
कंधे पे,
कभी सर पे
चढ़ जाता है.

कभी कान पकड़ कर
उमेठता है,
कभी नाक में 
तिनका करता है.

कभी हाथ पकड़ कर
खींचता है,
कभी पैरों से
घसीटता है.

अक्सर आगे खड़ा हो
ललचाता है,
कभी-कभी पीछे से
अंगूठा दिखाता है.

चलता हूँ 
तो साथ चलता है,
दौड़ता हूँ 
तो पैर फँसा गिरा देता है.

चैन से जीने नहीं देता
ये वक़्त 
मेरा पीछा 
क्यों नहीं छोड़ता..?