सावन कभी यूँ भी सताएगा की पतझड़ की आस जागेगी, सोचा न था...आपने इतनी खूबसूरती से कविता को अंजाम दिया है। कांच और दीवार का चिंतन टूटती उम्मीदों और रिश्तों के अधूरेपन से कुछ ऐसा जोड़ा है कि आज के युग में इसका महत्व और बढ़ जाता है। दीवार की अभेद्यता और कांच की चुभन से भरे रिश्ते क्या कभी पनप पाएंगे , क्या कभी सच्चे प्रेमी के मन को समझ पाएंगे ? कल रात कविता पढ़ी थी और बहुत देर तक यही सोचती रही। एक बार फिर सभी अंश पढ़े। दुआ करती हूँ कि आपकी सुन्दर रचनाएँ सभी सराह पाएं , समझ पाएं।
"सावन कभी यूँ भी सताएगा कि पतझड़ की आस जागेगी..." वाह, क्या बात कही है! सभी को समझ आये/सराहना हो इतनी महत्वाकांक्षा नहीं है मेरी, लेकिन हाँ कुछ मेरे लेखन के मर्म तक पहुँचें ऐसी ख्वाहिश ज़रूर रखता हूँ. आपके बेहद नायाब कमेन्ट के लिये आभारी हूँ, सुनयना... शुभकामनाओं के लिये अनेक धन्यवाद:)
Amit, I am not sure if I have read this one before through Facebook and if I left a comment. If I have, forgive me. But in case I am confusing this with another post of yours, allow me to say that lines like these leave a shiver in the soul. But that's what you intend, right?
क्या सुन्दर कल्पनालोक बना लिया आपने अमित जी !!
ReplyDeleteजी हाँ, योगेन्द्र, लेकिन इसकी बुनियाद यथार्थ की है.
Deleteपसंद करने के लिए धन्यवाद आपका, भाई जी!
Aajkal kaanch hi to boye ja rahe hain isliye to kisan atmahatya kar rahe hain. Bahut satik, Amit Ji.
ReplyDeleteलेकिन मैं नहीं करूँगा... कितनी बार करूँ?
Deleteसराहना के लिये शुक्रिया आपका, रवीश !
you never know... this may be true.
ReplyDeletewell written.
Thank you Indrani:)
Deletewhat a deep thought!
ReplyDeleteThank you Archana:)
DeleteFew lines but deep rooted...
ReplyDeleteThank you Ira:)
DeleteBoye huye kaanch !!! jhakjhor deti hai ye panktiya
ReplyDeletesaraahna ke liye anek dhanywaad, Rajni:)
DeleteInsightful...so few words yet so precise!
ReplyDeleteThank you Maniparna:) Glad you liked:)
DeleteBeautiful and profound :)
ReplyDeleteThank you Purba:)
DeleteSir yesterday you honoured me with a word - 'brevity' , Thankyou so much for that. But reading this it conforms your brevity. Very profound writing.
ReplyDeleteThank you Shraddha:)
Deleteसावन कभी यूँ भी सताएगा की पतझड़ की आस जागेगी, सोचा न था...आपने इतनी खूबसूरती से कविता को अंजाम दिया है। कांच और दीवार का चिंतन टूटती उम्मीदों और रिश्तों के अधूरेपन से कुछ ऐसा जोड़ा है कि आज के युग में इसका महत्व और बढ़ जाता है। दीवार की अभेद्यता और कांच की चुभन से भरे रिश्ते क्या कभी पनप पाएंगे , क्या कभी सच्चे प्रेमी के मन को समझ पाएंगे ? कल रात कविता पढ़ी थी और बहुत देर तक यही सोचती रही। एक बार फिर सभी अंश पढ़े। दुआ करती हूँ कि आपकी सुन्दर रचनाएँ सभी सराह पाएं , समझ पाएं।
ReplyDelete"सावन कभी यूँ भी सताएगा कि पतझड़ की आस जागेगी..." वाह, क्या बात कही है!
Deleteसभी को समझ आये/सराहना हो इतनी महत्वाकांक्षा नहीं है मेरी, लेकिन हाँ कुछ मेरे लेखन के मर्म तक पहुँचें ऐसी ख्वाहिश ज़रूर रखता हूँ.
आपके बेहद नायाब कमेन्ट के लिये आभारी हूँ, सुनयना... शुभकामनाओं के लिये अनेक धन्यवाद:)
O my, what profound idea conveyed in just a few words. The picture really spoke to you some deep thoughts there. Liked it very much!
ReplyDeleteI am highly obliged, Beloo, Thank you for your kind words:)
DeleteAmit, I am not sure if I have read this one before through Facebook and if I left a comment. If I have, forgive me. But in case I am confusing this with another post of yours, allow me to say that lines like these leave a shiver in the soul. But that's what you intend, right?
ReplyDeleteMy heart felt gratitude, Lata, for wording your startling reaction 'a shiver'...immensely beautiful! Thanks a lot:)
ReplyDeleteWow! THAT was amazing.
ReplyDeleteThank you Suresh:) Glad you liked:)
Deleteवाह ... क्या बात है ... अंकुर फूटने दो इस प्यार के ...
ReplyDelete:)
DeleteAgar ho jaye to KYA baat hai ... duniya kitni khoobsoorat ho jayegi
ReplyDeleteBikram's
:)
DeleteLoved the series and ek se badhkar ek...bohot hi khoobsurat Amitji :)
ReplyDeleteAm really glad of your attestation, Shweta:) Thanks a lot:)
ReplyDeleteSaawan ki woh dhaar jo laye kaanch mein ankur ka ubhaar ..aise saawan ki kya baat hai Amiit ji!
ReplyDeleteIsiliye aise saavan se darta hoon!
DeleteThank you Somali:)