जानता हूँ मैं कि
तुम उच्च-वर्गीय कुलीन
शैम्पू-पाउडर से गमकते
घूमते हो मर्सिडीज़ में
और मैं खुजैला अपाहिज
जिसके होंगे कई बाप
मक्खियों से भिनकता
रहता हूँ हलवाई के नीचे की
नाली में.
हाँ, मानता हूँ मैं कि
तुम रहते हो
खूबसूरत मालकिन के
एयर-कंडीशन्ड बँगले में, बाँहों में
और मैं उस दिन को
खुशकिस्मत मानता हूँ
जब मुझे दस बीस
लात-डण्डे न पड़ें.
तुम्हारा मूड बिगड़ जाता है
जब मालकिन जाती है विदेश
हफ्ते दस दिन को
हो जाते हो तुम गुमसुम
और इम्पोर्टेड न्यूट्रिशन खाने में
करते हो नख़रे
मैं भी तो हो जाता हूँ
थोड़ा कटखना
जब जूठे दोने-पत्तल
नहीं मिलते दंगे के दिनों में.
मुझे तुमसे प्यार नहीं :
तुम कहाँ-मैं कहाँ
न ही रश्क़ है मुझे तुमसे :
क़िस्मत अपनी-अपनी,
पर फिर भी
तुम्हारा आदर करता हूँ मैं
क्योंकि हमारी नस्लें
जुदा होते हुए भी
हैं तो आख़िर हम कुत्ते ही !
न जाने तुम
मुझसे घृणा क्यों करते हो..
Image
courtesy: Google
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (12-12-2015) को "सहिष्णु देश का नागरिक" (चर्चा अंक-2188) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
धन्यवाद आदरणीय डॉ. शास्त्री.. आभार!
DeleteVery cute dog!
ReplyDeleteGlad you liked this Beagle from Google:) Thank you Linda:)
DeleteNice title for the poem; class differences here are as pronounced as in humans.
ReplyDeleteWonder whether we learnt it from them or they from us:) Thank you Somali:)
DeleteGreat lines and what a cute doggie!
ReplyDeleteThank you Archana:)
DeleteVery touching!
ReplyDeleteThank you Purba:)
Deletethat's life
ReplyDeleteYes! Thank you IB:)
DeleteSomething ahead of just 'human focused' thinking. Aapne kotne creatively ye socha ki kutton ka sath b aisa ho skta h. Very nice.
ReplyDeleteAisa hi hai! Kabhi mauka padey to iss tarah ke do kutton ko aamne-saamne dekhna...ek ki aankhon mein upeksha aur doosre ki aankhon mein hikaarat saaf dikhai degi:(
DeleteThank you Shraddha:):)
A man's best friend
ReplyDelete:)
Deletemade me smile....the way you put the differences elaborately and the underlying similarity that cannot be done with in just one line made it just superb...!
ReplyDeleteYou got to the essence Sunaina..I am delighted!
DeleteThanks a whole lot for putting it in words here:):)
Discrimination, which is drawing a line between human beings. So nicely written with an example of dog. "हैं तो आख़िर हम कुत्ते ही"
ReplyDeleteExactly! Glad that you got it right:)
ReplyDeleteThanks loadz, Ranjana:)
Bahut badhiya likha hai particularly the last lines, hain tho hum kutte hi. Sadiyon ke baad ab farq dheere dheere mit gaya hai kyunke unki jaisi soch aur akhl ho gayi hai. Unhi ke jaise jeene lage hain insaan.
ReplyDeleteGlad you liked:) Thank you Fayaz:)
Deleteinsaanon ke faasle pahuche abol kutton tak...sach kaha kiski vrutti kis tak pahuchi pata nahi...bohot sundar rachna Amitji.
ReplyDeleteThank you Shweta:) Glad you liked:)
DeleteVery nice... Yet, unlike humans, they may not even be aware or notice the prejudice...
ReplyDeleteThank you for liking, Rajeev:)
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