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Friday, 17 February 2012

कुछ हाइकु...

(१)
कुतर जाता
भीतर ही भीतर
प्यार कैंसर

(२)
आम पे बौर
जैकेरेंडा है नीला
वसंत आया

(३)
यादें उम्मीदें
ख़ूबसूरत फ़िज़ा
जले पे नून

(४)
कोयल कूकी
फिर से पुरवाई
जागा मदन

(५)
रात नशीली
दिन में है आलस
टूटा बदन

14 comments:

  1. Hi Amit, thanks for dropping by at my space. I love your blog. What a lovely 'welcome' you have for your readers :-) Happy to follow you...

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    1. Hi Suchi! Thanks a whole lot for your wonderful words!

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  2. वाह!!
    सुन्दर हायेकु...

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  3. "यादें उम्मीदें
    ख़ूबसूरत फ़िज़ा
    जले पे नून"
    क्या खूब कहा है. कुछ छोटी छोटी हाईकू में पूरी गज़लें हैं!

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  4. I liked the third and fourth one Sir. Beautiful!

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  5. Beautifully written!
    Especially loved the fourth one, lovely.

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  6. हाइकू पढ़ी ... पढ़कर कसक उठी .... और सच कहू जलन .. लिखना छूट जाता है जिन्दगी की उलझनों में ... चलिए फिर शुरू करने की कोशिश करते हैं .. नए सिरे से शुरुवात ...

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  7. Thank you Renu for liking them...and I'm sure you will write even better! I look forward to reading it soon...

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