मैं बाज़ार नहीं जाता-
बाज़ार नहीं जा
पाता
दीवाली के हफ़्ते.
खाने-पीने की
दुकानों के बाहर
ललचाई आँखों से ताकते
भूखे बच्चे, सूखी गर्भवती
स्त्रियाँ
हाँफते-खाँसते आदमी
मेरा ज़ायक़ा
कसैला कर जाते
हैं
मिठाई की किसे
पड़ी?
लग्ज़री कारों
में चलने वाले
फूल बेचते लाचार-निरीह
बच्चों से
जब करते सौदेबाज़ी
तो मुझे, उनकी क्या
कहूँ,
धन से ही
होने लगती है
विरक्ति सी.
अपने हर्षोल्लास के बीच
बेशक़ीमती गहनों, कपड़ों में
सजे
दर्प-अभिमान से दमकते
चेहरों
महँगे इत्रों से गमकते
शरीरों
के भीतर झाँका
कभी?
वहाँ कोई आत्मा
निवास करती है?
छोटी सी ठेली
या टोकरे में
फल, सब्ज़ी,गुब्बारे,दिये,
कंदील, रुई
बेचने वालों की
उदास, बुझी आँखों
की तरफ़
देखने की फुर्सत
हुई कभी?
चहुँ ओर की
चकाचौंध जगमगाहट
भक्क से सूनी
मायूसी में बदल
जाती है,
इस सारे उपद्रव
का कोई
प्रयोजन ही नहीं
लगता फिर.
करोड़ों की अट्टालिकाओं
में
रहने वाले
लाखों रुपये हँसते-हँसते
'तीन पत्ती' में
उड़ाने वाले
काश कुछ पत्ते
इन मुफ़लिसों के
(ताश के) घरों
में भी जोड़ते!
Stark human reality expressed touchingly!
ReplyDeleteThank you Uppal ma'am for liking my work:)
Deleteत्योहार दीपों का तो इसी लिए है ... एक दीपक से दूसरा और फिर तीसरा चौथा जल सके ... सब और प्रकाश हो ...
ReplyDeleteपर आज इसको हम भूल गए ... अच्छी रचना ...
पसंद करने के लिये धन्यवाद दिगम्बर साहब:)
Deleteआपकी लिखी रचना "मित्र मंडली" में लिंक की गई है https://rakeshkirachanay.blogspot.in/2017/11/42.html पर आप सादर आमंत्रित हैं ....धन्यवाद!
ReplyDeleteमित्र मण्डली में मेरी रचना शामिल करने के लिये धन्यवाद राकेश जी:)
Deleteवाह, बहुत सुन्दर
ReplyDeleteपसंद करने के लिए धन्यवाद ओंकार जी:)
Deleteदेने के लिए जिगर जो चाहिए होता है ..
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
पसंद करने के लिए धन्यवाद कविता जी:)
Deleteमार्मिक सत्य !
ReplyDeleteपसंद करने के लिए धन्यवाद ध्रुव:)
DeleteHarsh reality of life Amit Ji..
ReplyDeleteIndeed, no? Thank you Renu ji:)
DeleteBitter truth ....
ReplyDeleteYes, it is! Thank you Ranjana:)
Deleteपसंद करने के लिए धन्यवाद जोशी जी:)
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ReplyDeleteyour info is quite helpful to forever.used to really good
Thank you dear..
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करोड़ों की अट्टालिकाओं में
ReplyDeleteरहने वाले
लाखों रुपये हँसते-हँसते
'तीन पत्ती' में उड़ाने वाले
काश कुछ पत्ते
इन मुफ़लिसों के
(ताश के) घरों में भी जोड़ते!
किसको ? किसकी पड़ी है ? सब अपने आप में खुश हो जाना चाहते हैं !! बढ़िया शब्द अमित जी
Aapko rachna pasand aai bhai Yogendra ji, mujhe khushi hui:) Dhanywaad:)
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