कोमलांगी सुरमई शाम को
कामुक सलेटी रात ने
अंक में भरना
चाहा ही था
कि दोनों का सखा
गोरा-चिट्टा चाँद
मुस्कुरा उठा
और शरारत से बोला
लो मैं आ
गया
तुम दोनों को
ख़ुश करने
के लिए.
जल कर काली
हुई रात
फुंकार कर बोली
हम हैं मुक्त
किसी की अधीन
नहीं
ख़ुद अपने में
पूर्ण
हमें तुम्हारी ज़रूरत नहीं..
फिर उसने
अपने
जलते हुए होंठ
क़मसिन शाम के
प्यासे होठों पर रख
दिए :
'छुन्न' का शब्द
हुआ
और आहत चाँद कुएँ
में
जा गिरा!
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