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Monday, 30 January 2017

वफ़ा

Image from Google

पर्वतों की जड़ों को
मीठी नदियाँ सींचती थीं
एक बहेलिये और गाय
के बीच प्रेम हो गया.
गाय निछावर तो थी
पर विश्वास कर पाती.
बहेलिया समझाता
देख, अगर मैं होता  कसाई
या, तू मुर्ग़ाबी
तो तेरा शक़ मानी होता
पर मैं भला तुझ से
बेवफ़ा क्यों होऊँगा ?
दिन और रात ढलते गए
प्रेम प्रगाढ़ हो चला.

फिर एक दिन
गाय की मुलाक़ात
एक बिजार से हो गई
और दोनों ने मिलकर
बहेलिये को
अपने नुक़ीले सींगों से
मार डाला..

पर्वतों के शिखरों पे
सफ़ेद धुआँ
फूलता रहा!

Sunday, 22 January 2017

अस्पताल में एक रात

Image from Google

फफूँद लगी, फटी बोरी से
घुने, सीले अनाज की मानिंद
टपकती है रात
टिन-शेड पर
थमती है, बीतती
सोने देती.

साँय-साँय करता दमा
अस्थि-पंजर में
सूखे-सलेटी स्तनों पर
स्याह-सफ़ेद
धुएँ की लकीरें
बनती-मिटतीं..

रुको, ठहरो, देखो तो ज़रा
CCU के मद्धम प्रकाश में
नर्स और वॉर्डबॉय
आलिंगनबद्ध!
नाराज़ मत होओ, ख़ामोश गुज़र जाओ
'ज़िन्दगी' होने दो.

Wednesday, 18 January 2017

समूह

तमाम कोशिशों के बावजूद
बलिष्ठ केकड़ों की
फ़ौलादी जकड़ से जब मैं
निकल पाया
तो मैंने इन्तज़ार किया,
और  एक-दूसरे को खा-खा कर
जब वो इतने मोटे हो गए
की टोकरे में समाएं
तो एक दिन मैं  बस चुपचाप
फिसल कर निकल गया.

भागने की जुगत में
मुझे चाहते भी
भेड़ों के एक रेवड़ में
शामिल होना पड़ा...
कोई बात नहीं, मजबूरी!

थोड़ी दूर चलकर
मुझे ताज्जुब हुआ
ये देख कर
कि इतने अनुशासित रेवड़ की
सारी भेड़ें नितान्त अन्धी थीं ;
लेकिन मैं जैसे
बेमौत मरा  ये जान कर
कि सबसे आगे चलने वाले
उनके नेता ने
काला चश्मा भी पहना हुआ था!
Both images from Google

Sunday, 15 January 2017

चित्रकार..!


गधे रेस खेलते नहीं केवल
बल्कि  जीतते  भी ,
घोड़े अस्तबलों में क़ैद
बेचैन  कसमसाते   हैं .

क़लम पकड़ने की तमीज़ नहीं
तूलिका  थाम  कर बेशर्म
बेहूदा फ़ोटो  खिंचवाते
बे सलीक़ा  रंग लगाते ...

गधे थोड़ा और तनते
घोड़े शर्मिंदा हो जाते हैं.



Wednesday, 11 January 2017

सफ़रनामा..

दोस्तों,
आपको जान कर ख़ुशी होगी कि आपका प्रिय "सफ़रनामा " इस वर्ष  (2015 - 16 ) फिर से 'सर्वश्रेष्ठ हिन्दी ब्लॉग्स' की सूची में शामिल है!
(लिंक: http://www.indiantopblogs.com/p/hindi-blog-directory.html ) (शीर्ष से सातवें स्थान पर)
आप सभी बधाई और धन्यवाद के पात्र हैं.
आयोजकों का धन्यवाद कि निर्णायक मण्डल इसके लिए किसी प्रतियोगिता का आयोजन नहीं करता, अन्यथा मैं इसमें शामिल होने में असमर्थ ही रहता.
किसी भी प्रकार की प्रतिस्पर्धा से मैं किंचित परहेज़ ही करता हूँ क्योंकि मेरा मानना है कि हर व्यक्ति/लेखक  विलक्षण है, ईश्वर की अनुपम कृति है..
इससे भी बड़ी ख़ुशख़बर ये है कि हिन्दी आधिकारिक  रूप से  विश्व की सर्वाधिक बोले जाने वाली भाषा घोषित हुई है. पिछले वर्ष तक ये स्थान मैंडेरिन को प्राप्त था.
हम सब हिन्दुस्तानियों के लिए ये गर्व का विषय है.
प्रेम-भाव बनाये रखियेगा... क्योंकि लिखता मैं हूँ किन्तु सँवारते आप सब हैं; आपके बिना मैं अधूरा हूँ!
आदर सहित आपका,
अमित


Friday, 6 January 2017

सुपरमून

प्यारे दोस्तों,
एक प्रगतिवादी, प्रयोगधर्मी रचनाकार होने के नाते मैंने फिर एक बार साहस बटोरा है आपके सामने कुछ नयी कवितायें रखने का.
साहित्य-सेवा में कुछ और क़दम...
आप सब विचारशीलपाठकों से प्रेमानुरोध है कि कृपया दो बार पढ़ें .. दूसरी बार में आपको नया, असली अर्थ दिखेगा.
आपकी टिप्पणियाँ  मेरे लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं, उनका स्वागत है!
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* ये जानते हुए भी कि आपमें  बहुत से विद्वान् हैं, मैंने इस शब्द का प्रयोग जान-बूझ कर नहीं किया है. मेरा मानना है कि मेरी कविता विद्वत्ता का विषय नहीं है, ये विचारोत्तेजक है.. भावनाप्रधान है!
आपका,
-अमित
Image from Google

आती हुई सर्दी
नवम्बर की किसी रात को
जाने कितने बजे
सुपरमून धरती के क़रीब

नीले लोहे के
लाल फूलों की बारिश 
चन्दन की अगरबत्ती
से उठता उपलों का धुआँ

लिनेन के कुर्ते पर
काश्मीरी शॉल के नीचे
कोई गीला-ठण्डा कीड़ा
होने की बेचैनी

साँसें, आँखें, माथा, कनपटियाँ
सनसनाती सी
दिमाग़ में तैरते विचार
दिल में थमे अहसास

सब कुछ तो है
पर कुछ भी नहीं!

Tuesday, 3 January 2017

Zorba

Hi friends!
So what if it’s the last letter of the alphabet today, it is also the first ABCW of the New Year!
Let’s not dampen the ethos thinking about the end of this round, and be happy that a fresh one starts next week..

and what better word to encapsulate this spirit than what I present today: 


Z is for Zorba
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