लो आज फिर घटा
घिर आई
टीस कोई भूली
फिर से उठ
आई
दिन महीने साल यूँ
ही भाग रहे
हैं
ज़िन्दग़ी किसी मोड़
पे ठिठकी सी
नज़र आई
आमों के दरख़्त
तो अब वीरान
पड़े हैं
कोयल मुझे इक
दिन कीकर पे
नज़र आई
नग़मे प्यार के सब भूल
चुके हैं
उजड़ी हुई कहानी
याद मगर फिर
आई
मेड़ों उगी दूब
भी अब सूख
चली है
दिल की बावड़ी
में बस काई
ही काई!
(Image from Google)