Safarnaamaa... सफ़रनामा...
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Friday, 23 January 2015
लकीरें
क़िस्मत
औ
'
दौलत
की
तो
थीं
ही
नहीं
,
मेरे
हाथों
की
हदों
ने
थाम
लीं
वर्ना
जाने
कहाँ
तक
जातीं
ये
ग़म
की
लकीरें।
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