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Friday, 23 January 2015

लकीरें


क़िस्मत  ' दौलत की तो थीं ही नहीं,

मेरे हाथों की हदों ने थाम लीं वर्ना

जाने कहाँ तक जातीं ये ग़म की लकीरें।


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