दीवला हूँ कोरी मिट्टी का,
पार-साल का.
मुझ तक आते आते
तुम्हारी मुँडेर ही ख़त्म हो गयी
और मैं बच रहा
जगमग पंक्ति से.
करता रहा इन्तेज़ार साल भर
कि शायद
चौबारे या चौराहे
पर रख आओ.
नववर्ष, जन्मदिवस,
पूजा-पाठ में जलाओ
या किसी आत्मा-शांति के लिये
गंगा में ही बहाओ.
पर मैं तो ताक़ पड़ा भूला रहा
डरता हूँ इस साल
नयों के नीचे
दबा न रह जाऊँ!
बहुत सुन्दर
ReplyDeleteदीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं !
नई पोस्ट आओ हम दीवाली मनाएं!
धन्यवाद कालीपद.
Deleteआपको भी:
As the New year starts it is better not to see the past years which are now spine in the memories. Very nicely composed particularly the last stanza .r
ReplyDeleteThank you Pradip:)
DeleteBeautifully composed !...
ReplyDeleteThank you Prasad:)
DeleteAakhir laut aaye dhamake ke saat :)
ReplyDeleteHa..ha..ha:) If you say so:)
DeleteThank you bro:)
धन्यवाद डॉक्टर शास्त्री.
ReplyDeleteआभारी हूँ.
SOULFUL-very sad thoughts.
ReplyDeleteThank you ma'am!
Deletebahut bhavpurn kavita
ReplyDelete