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Friday, 25 October 2013

बेकार

फेंका नहीं जा सकता
बेचा भी नहीं,
ना दान दिया जा सकता हूँ
और उपहार में तो बिल्कुल ही नहीं.

सजता था कभी 
सजाता भी,
क़ीमती हुआ करता था
और उपयोगी भी.

पुराने फ़ैशन का
शानदार फ़र्नीचर हूँ मैं,
नये चलन के इस दौर से
मेल नहीं खाता.

...पर मेरे जैसे अब
बनते भी कहाँ हैं!  


19 comments:

  1. सच!!! नहीं बनते.......
    बस फर्नीचर की तुलना इंसानों से न की जाय तो अच्छा !!!
    :-)

    सादर
    अनु

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    1. नहीं जी, मैने फ़र्नीचर की तुलना इन्सानों से नहीं की है.
      पर हाँ, अपनी तुलना फ़र्नीचर से ज़रूर कर दी है.
      धृष्टता के लिये क्षमा चाहूँगा.
      धन्यवाद अनु जी :)

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  2. jitna tumpe aitbaar kiye jate hain,
    utna hi hum sanam bekaar hue jaate hain,

    kafi samay baad apki post padne ko mili jisne mujhe bhi yeh sher likhne ko prerit kar diya.

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  3. Amit jee: Kafee dino ke baad aap kee kavita padh kar acha laga.
    Hopefully you will write again regularly... thanks

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    1. Hope I get inspiration to write and time to publish!
      Thank you Prasad:)

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  4. "पुराने फ़ैशन का
    शानदार फ़र्नीचर हूँ मैं,
    नये चलन के इस दौर से
    मेल नहीं खाता...."Its easy to relate to this, Amit! Very nice lines...Good to see you back!

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  5. Bade dinon baad padare ya mujse kuch kavitayein choot gaye?

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    1. Never mind...we'll meet again!
      Thank you Suresh:)

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  6. फर्नीचर तो फिर भी ठीक है .. मुझे तो कभी कभी डोर मैत जैसा लगता है

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    1. ...but a doormat can easily be thrown away, no?
      Thank you Puru:)

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  7. The punch line was wonderful!

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    1. I too liked it the most!
      Thank you Deepak:)

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  8. Lekin aap jaison se he sacchai kayam hai.

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  9. "पुराने फ़ैशन का शानदार फ़र्नीचर हूँ मैं, नये चलन के इस दौर से मेल नहीं खाता.."
    I loved it and I can completely relate to this...:)

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    1. I'm glad you liked it!
      Thank you R. Vyas:)

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  10. per mere jaise ab bante hi kahan hai... bahut sunder

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