फेंका नहीं जा सकता
बेचा भी नहीं,
ना दान दिया जा सकता
हूँ
और उपहार में तो
बिल्कुल ही नहीं.
सजता था कभी
सजाता भी,
क़ीमती हुआ करता था
और उपयोगी भी.
पुराने फ़ैशन का
शानदार फ़र्नीचर हूँ
मैं,
नये चलन के इस दौर से
मेल नहीं खाता.
...पर मेरे जैसे अब
बनते भी कहाँ हैं!
सच!!! नहीं बनते.......
ReplyDeleteबस फर्नीचर की तुलना इंसानों से न की जाय तो अच्छा !!!
:-)
सादर
अनु
नहीं जी, मैने फ़र्नीचर की तुलना इन्सानों से नहीं की है.
Deleteपर हाँ, अपनी तुलना फ़र्नीचर से ज़रूर कर दी है.
धृष्टता के लिये क्षमा चाहूँगा.
धन्यवाद अनु जी :)
jitna tumpe aitbaar kiye jate hain,
ReplyDeleteutna hi hum sanam bekaar hue jaate hain,
kafi samay baad apki post padne ko mili jisne mujhe bhi yeh sher likhne ko prerit kar diya.
beautiful sher!
DeleteThank you Shayar:)
Amit jee: Kafee dino ke baad aap kee kavita padh kar acha laga.
ReplyDeleteHopefully you will write again regularly... thanks
Hope I get inspiration to write and time to publish!
DeleteThank you Prasad:)
"पुराने फ़ैशन का
ReplyDeleteशानदार फ़र्नीचर हूँ मैं,
नये चलन के इस दौर से
मेल नहीं खाता...."Its easy to relate to this, Amit! Very nice lines...Good to see you back!
Glad you liked!
DeleteThank you Panchali:)
Bade dinon baad padare ya mujse kuch kavitayein choot gaye?
ReplyDeleteNever mind...we'll meet again!
DeleteThank you Suresh:)
फर्नीचर तो फिर भी ठीक है .. मुझे तो कभी कभी डोर मैत जैसा लगता है
ReplyDelete...but a doormat can easily be thrown away, no?
DeleteThank you Puru:)
The punch line was wonderful!
ReplyDeleteI too liked it the most!
DeleteThank you Deepak:)
Lekin aap jaison se he sacchai kayam hai.
ReplyDeleteI'm humbled!
DeleteThank you Indu:)
"पुराने फ़ैशन का शानदार फ़र्नीचर हूँ मैं, नये चलन के इस दौर से मेल नहीं खाता.."
ReplyDeleteI loved it and I can completely relate to this...:)
I'm glad you liked it!
DeleteThank you R. Vyas:)
per mere jaise ab bante hi kahan hai... bahut sunder
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