नैनीताल: नवम्बर 2011
"हिमालय दर्शन"
एक जगह को
नाम दिया गया
गहन जंगलों के बीच
जहां से दिखाई देती हैं
सैकड़ों मील दूर
हिमाच्छादित चोटियाँ,
गहरे हरे-काले पेड़ों के जंगल!
...सचमुच मनोरम...!
जो हो सकता था
और भी मनोरम,
जो था ही
और भी नैसर्गिक!
क्यों बना दी हमने
वहां एक रायफल शूटिंग साईट
और भगा दीं
सारी भोली-भाली चिड़ियाँ
दूर!
क्यों लगा दी हमने
प्लास्टिक की बोतलों, गुब्बारों और गेंदों की कतारें ?
विचारहीन माता-पिताओं की
इंसेंसिटिव संताने
अपमार्केट लेबल्स
और बड़ी-बड़ी गाड़ियों का दर्प पहने हुए
मॉम और डैड की शाबाशी, मोटिवेशन और प्रोत्साहन
पाते हुए
अस्वस्थ, ओवरवेट, शिथिल
और मानसिक तौर पर बीमार बच्चे-
छोले-भटूरे, पिज्जा और बर्गर
की दुकानों की ओर
'शूटिंग' की मशक्कत से
'थक' कर भागते हुए...
'जय माता दी', 'शीला की जवानी', 'वाका-वाका' और 'ब्राज़ील'
के शोर से
असंप्रक्त, निरुपाय, असहाय
चिड़ियों को डराते,
उनके ही घरों से
उन्हें बेघर करते,
शाहाना और रूहानी "हिमालय दर्शन"
को नज़रंदाज़ कर
आई-पॉड और मोबाईल फोन्स
आँखों- कानों-दिल-दिमागों में घुसाए
अपनी-अपनी गाड़ियों
की ओर बढते हुए
चिड़ियों की त्रासदी से
बिलकुल
बेखबर...बेपरवाह...