Image from Google
समर्पण: उन अनगिनत प्राणधारियों को जिन्हे इन्सान की क्रूरता अनेकों कारणों से मारे डाल रही है.
"नाचेंगे, गायेंगे, रंग-जमायेंगे...
जन्नत उतारेंगे"
हाँ, प्रभु श्री (श्री)
पर आप ये भूल गए
कि हज़ारों चिड़ियाँ, मछलियाँ, कछुए,
लाखों कीट-पतंगे, केंचुए, मेंढक, टिड्डे
बिला वजह बेमौत मारे गए
बचे हुए बेघर-बर्बाद हो गए..
दुनियादार व्यापारियों की
ख़ुदग़र्ज़ी से तो शिक़ायत
न होती हमें
पर प्रेम-आध्यात्म के अवतार
आप को हम करोड़ों
जीवात्माएँ कैसे माफ़ कर दें?
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (12-04-2016) को "ज़िंदगी की किताब" (चर्चा अंक-2310) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आदरणीय डॉ. शास्त्री,
Deleteआभारी हूँ कि आपको कविता का मर्म स्पर्श हुआ.
अनेक धन्यवाद.. अनुग्रहीत!
आपकी प्रशंसा और सम्मान के लिए आभार!
ReplyDeleteक्रिकेट में Third umpire होता हैं, आजकल हर जगह सी सी टीवी कैमरे लगे होते है इस डर से लोगों में अनैतिक हरकत न करने का दबाव बनता हैं मगर इंसान यह भूल जाता हैं कि इश्वर उसे हर जगह हर वक्त देख रहा है।उसका कोई गुनाह छुपा नहीं रह पायेगा।
ReplyDeleteThank you Manisha, glad you agree!
DeleteLook at our compulsions,we still idolize such avtars.Their greed for name fame should be an eye opener.
ReplyDeleteHappy that you attest my views. Thank you Indu ma'am!
Deleteइंसान अपने से आगे अब नहीं देख रहा ... पर इश्वर है जो सब देखता है जानता है ...
ReplyDeleteमेरी सोच को परवाज़ने के लिए शुक्रिया आपका, दिगम्बर !
DeleteI concur with your angst and also what Manisha has to say!!
ReplyDeleteThank you Deepak:)
DeleteI second your thought...
ReplyDeleteNice post. :)
Thank you Arpita:)
DeleteVery true, Amitji.
ReplyDeleteLike Gandhiji said- "The world has enough for everyone's needs, but not enough for anyone's greed."
Thank you Anita:)
DeleteKhudh ke andar bhi to nahin dekhte hain hum. Apni zindagi mein bhi to kuch badlaav laya jaa sakta hai joh prakruti ko bachane ka kaam aaye? Teen sou meter doori mein jo cheez kareedne jaate hain, tab bhi gaadi leke niklenge aur kosenge bhagwaanse leke baaki sabhi ko? Ye bhi aapke shabdon mein dohraya jaye to logon ke dil chooyega, Amitji :)
ReplyDeleteI completely agree Suresh sir. Thank you for the suggestion..will try soon!
Deleteमार्मिक कविता , आज के परिपेक्ष में बिलकुल सटीक
ReplyDeleteThank you Sangeeta.
DeleteHeart wrenching reality. May the mortal souls learn that all this will end one day. Stop, take note and take care.
ReplyDeleteThank you for resonating my thought, and liking the poem, Saru:)
ReplyDelete