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Tuesday, 26 December 2017

Thursday, 2 November 2017

दीवाली बाज़ार

मैं बाज़ार नहीं जाता-
बाज़ार नहीं जा पाता
दीवाली के हफ़्ते.

खाने-पीने की दुकानों के बाहर
ललचाई आँखों से ताकते
भूखे बच्चे, सूखी गर्भवती स्त्रियाँ
हाँफते-खाँसते आदमी
मेरा ज़ायक़ा
कसैला कर जाते हैं
मिठाई की किसे पड़ी?

लग्ज़री कारों
में चलने वाले
फूल बेचते लाचार-निरीह बच्चों से
जब करते सौदेबाज़ी
तो मुझे, उनकी क्या कहूँ,
धन से ही होने लगती है
विरक्ति सी

अपने हर्षोल्लास के बीच
बेशक़ीमती गहनों, कपड़ों में सजे
दर्प-अभिमान से दमकते चेहरों
महँगे इत्रों से गमकते शरीरों
के भीतर झाँका कभी?
वहाँ कोई आत्मा निवास करती है?

छोटी सी ठेली या टोकरे में
फल, सब्ज़ी,गुब्बारे,दिये, कंदील, रुई
बेचने वालों की
उदास, बुझी आँखों की तरफ़
देखने की फुर्सत हुई कभी?

चहुँ ओर की चकाचौंध जगमगाहट
भक्क से सूनी मायूसी में बदल जाती है,
इस सारे उपद्रव का कोई
प्रयोजन ही नहीं लगता फिर.

करोड़ों की अट्टालिकाओं में
रहने वाले
लाखों रुपये हँसते-हँसते
'तीन पत्तीमें उड़ाने वाले
काश कुछ पत्ते
इन मुफ़लिसों के
(ताश के) घरों में भी जोड़ते!


Monday, 9 October 2017

काई

लो आज फिर  घटा घिर आई
टीस कोई भूली फिर से उठ आई

दिन महीने साल यूँ ही भाग रहे हैं
ज़िन्दग़ी किसी मोड़ पे ठिठकी सी नज़र आई

आमों के दरख़्त तो अब वीरान पड़े हैं
कोयल मुझे इक दिन कीकर पे नज़र आई

नग़मे प्यार के  सब भूल चुके हैं
उजड़ी हुई कहानी याद मगर फिर आई

मेड़ों उगी दूब भी अब सूख चली है
दिल की बावड़ी में बस काई ही काई!


(Image from Google)


Friday, 15 September 2017

क़ीमती

ड्रॉअर में बस यूँ ही पड़ी
सस्ती शराब की बोतल हूँ
'बार' में सजा क़ीमती स्कॉच
का ख़ाली डिब्बा नहीं!

चाहें तो पियें
और मस्त हो जाएँ
या फिर डिब्बों को निहारें
मन बहलायें.

हाँ, अगर पियें
तो ज़रा संभल कर
ज़ोर का धक्का लगेगा,

डिब्बों से कोई डर नहीं
सजावटी सामान है
बरसों यूँ ही रहेगा.


Wednesday, 13 September 2017

Perennial

Will the Ganga defile
If I end
My life in it
To reunite with Thee?

Why no my soul
Is too pure
To pollute it
For the moments it remains
In there..

And the biodegradable body
Will satiate the fish
Within couple of hours.

Ah but for the stent
In my heart
And the ache!
(Image from Google)


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