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Monday, 14 March 2016

रू-ब-रू


चलो अच्छा हुआ  हम
ख़यालों  में  लड़  लिए
होते जो रू--रू, नाहक़
तमाशे का  सबब बनते.

Wednesday, 24 February 2016

दीवार-5


उपजाऊ  बन जाए
कहीं सीमेन्ट का गारा
फूट आएं
कहीं अंकुर
तुम्हारे बोये  हुए
काँच में !
सावन से डरता हूँ.
Image courtesy: Google



Sunday, 14 February 2016

दीवार- 3


हाँ, तुम्हारी तरफ़ हैं फूल,
मेरी तरफ़ खरपतवार.
पर जब कभी-कभार
चलती है हवा उस रुख़ से
तो ले आती है  ख़ुश्बुएं
मिट्टी पर पानी की
यादों पर मिट्टी की
बिलकुल ताज़ी
अक्षत, अनछुई !
ये काँच के टुकड़े
उसे काट नहीं पाते..
     Image courtesy: Google






Thursday, 10 September 2015

मौसम


क्यों छाये हैं ये
बादल से हमारे बीच
क्यों रह-रह के
फुहार सी आती हो...
जम कर ही बरस जाओ
इस से तो इक बार
और बस फिर
खुल जाए मौसम!

Friday, 4 September 2015

मेरा साया


या तो  बीच-दुपहरी   है
रौशनी  तेरे तसव्वुर की,
या फिर  रात-अमावस
सियाही तेरी चाहत की,
जो भी हो बिलकुल तनहा हूँ मैं
मेरा साया भी  मेरे साथ नहीं...!

Wednesday, 2 September 2015

तोहफ़ा


ज़ख़्म हरा भी है
और गहरा भी
दिया तो था तुमने
पर है सिर्फ़ मेरा ही

Friday, 28 August 2015

पत्थर


बर्फ़ सा गलता हूँ
मोम सा पिघलता
भीतर-ही-भीतर
बारिश सा बरसता..

पर पत्थर  हो गया हूँ मैं
बहता हूँ
टपकता
रिसता.. 

Wednesday, 26 August 2015

फिसल जाए… मचल जाये !


उदास शीशे  आँखें मेरी
मखमली किरक  सूरत तेरी
कैसे निकालूँ  फिसल-फिसल जाए!

लहू का फूल  दिल मेरा
रेशम की फाँस याद तेरी
कैसे उभारूं मचल-मचल जाये !!

Tuesday, 25 August 2015

शुक्रिया


बेज़ार होना
मुरझाने लगें अगर
फूल मेरे  क्योंकि
क़ाग़ज़ के नहीं हैं,
अल्फ़ाज़ पसन्द के अपनी
जो चाहे लिख लेना
मेरे सलाम में मगर 
शुक्रिया शामिल रखना!

Sunday, 23 August 2015

मेरा, मेरा.. मेरा !


ये सब मेरा है, ये सिर्फ़ मेरा
इसमें से कुछ नहीं दूँगा मैं
और  ये  तो   है  ही   मेरा ..

बटोरता हूँ सब जल्दी-जल्दी
इक लम्बे सफ़र की है तैयारी

आना मेरे दोस्तों, भाईयों सभी
माफ़ करके पुरानी  कहीसुनी
शानदार    विदाई    में    मेरी

देखना नए-नकोर कपड़े  मेरे
सिलवाया है एक क़फ़न मैंने
कई   सारी   जेबों   वाला … !


Thursday, 20 August 2015

इसरार


चलो जाने दो, सुनो
मुँह मत  फेरो मगर
नज़्म मेरी ताज़ी है
बासी अख़बार नहीं है!

Monday, 17 August 2015

सैलाब


कुछ धुँधलाई सी है
तड़पती  बर्क़
ग़र्द  की आँधी में,

बस मत छेड़ो अब
कुछ ख़ुश्क़ सा
हुआ जाता है नासूर,

कैसे बाँधोगे 
दर्द का सैलाब मेरे
अपने रुमाल में,

जो तोड़ चला
ये हद्दों को
फिर से अपनी!


Help:
बर्क़ = lightning        
नासूर = rotten wound   

Monday, 10 August 2015

सलीक़ा



                              प्यासे - सूखे होठों को
                            सिखाते हो पीने का सलीक़ा,
                             चलो अब फेंक दो प्याला
                             सुराही मेरे मुँह से लगा दो.

Image by google