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Saturday, 13 June 2015

Foreword-2


श्री रामेश्वर काम्बोजहिमांशु’(प्रख्यात लघुकथाकार, वैयाकरण, कवि, समीक्षक. एकल प्रकाशन:20, सम्पादन: 28, आकाशवाणी प्रसारण: 5 केन्द्रों से.) पुस्तक की भूमिका में कहते हैं:
Quote:
“...संक्षेप में कहें तो-‘चिटकते काँचघरकी कविताएँ कोमल अनुभूतियों  की कविता है  , काँच सी नाज़ुक कि ज़रा -सी ठेस और काँचघर सी  चिटक जाए !अब उनमें रहने को मजबूर नाज़ुक एहसास क्या करें?एहसास जो तितली के पंख जैसे कोमल और इंद्रधनुष जैसे चित्ताकर्षक रंगों से सराबोर हैं !
नतीजा एक ही है कि  चिटक गए फर्शों पर बिखरी किरचों से घायल, लहूलुहान पाँव लिये वे एहसास ऐसी कसक समोए जीते रहें ,जो शब्दों से परे हैं।इस संग्रह में कविता हो या शायरी या कुछ और, शिकवा नहीं, शिकायत नहीं, सिर्फ़ धीमी-धीमी कराहों के स्वर बिखरे हैं ,जैसे कोई चुपचाप खुद अपने ज़ख़्मों से खेल रहा हो और दर्द असहनीय हो उठने पर कराह उठे।कवि- मन में प्रकृति से बेइंतहा प्यार है ,तो उसमें डूब जाने की पुरज़ोर चाह भी हैयहाँ तक कि कहीँ-कहीं कवि तन्मय नहींतदरूप हो जाता है...
संवेदनशील पाठकों के लिए यह संग्रह एक उपहार सिद्ध होगा..."

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Foreword-1



Dr. Ved Prakash ‘Vatuk’, D.Litt.(Harvard University); Ex Secretary Hindi Parishad, London; Ex Director Folklore Institute, Berkeley, says in his foreword:
Quote:
“...प्रेम कविताओं का केंद्र-बिंदु 'मैं' नहीं, 'तुम' अधिक है।  'मिलन' से अधिक 'विरह'- जनित स्मृतियों का स्वप्न संसार विशद रूप से चित्रित हुआ है।  इन कविताओं में एक विशिष्ट प्रकार का आकर्षण है, जिजीविषा भी।  वहाँ अपने 'क़ातिल' को भी 'ख़ुदा' मानने का आग्रह है, मधुर-स्मृतियों की चिर कोपलें हैं- हृदयस्थ।  समर्पण की भावना में सागर में सरिता की तरह प्रेम में डूब जाना।  इंतज़ार का मीठा दर्द, हार में भी शहन्शाह होने का अहसास।  इस बगीचे के फूलों में सुगन्धि भी है, सुवास भी और चिरन्तन साथ देने वाले काँटों का अहसास भी।  इस खण्ड की विविधता आशान्वित करती है कि अभी कवि के पास बहुत कुछ और भी है कहने को...
कृतज्ञ हूँ कि अमित ने मुझे अपनी काव्य-सुरसरि में डुबकी लगाने का आनन्द दिया और आश्वस्त हूँ कि अभी वे बहुत दूर जायेंगे अपनी काव्य-यात्रा में, अनेक, भिन्न पड़ावों को पार करते हुए...”

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