तमाम कोशिशों के बावजूद
बलिष्ठ केकड़ों की
फ़ौलादी जकड़ से
जब मैं
निकल न पाया
तो मैंने इन्तज़ार किया,
और एक-दूसरे को खा-खा कर
जब वो इतने मोटे
हो गए
की टोकरे में न
समाएं
तो एक दिन
मैं बस
चुपचाप
फिसल कर निकल
गया.
भागने की जुगत
में
मुझे न चाहते
भी
भेड़ों के एक
रेवड़ में
शामिल होना पड़ा...
कोई बात नहीं,
मजबूरी!
थोड़ी दूर चलकर
मुझे ताज्जुब हुआ
ये देख कर
कि इतने अनुशासित
रेवड़ की
सारी भेड़ें नितान्त अन्धी
थीं ;
लेकिन मैं जैसे
बेमौत मरा ये
जान कर
कि सबसे आगे
चलने वाले
उनके नेता ने
काला चश्मा भी पहना
हुआ था!
Both images from Google
On a lighter not it can be,आसमान से गिरा और खजूर में अटका.. but its extremely painful and the revelation is generally numbing to the senses, especially to a raw and revolutionary personality.अक्सर हर मोड़ पर, हर व्यक्ति से, संघर्ष करते करते हमारा मूल उद्देश्य भूल जाता है और बस, संघर्ष प्रधान रह जाता है... और किसको दिखाएँ की लीडर ने काला चश्मा लगाया है? जब सारे ही बिना चश्मे के खुद का प्रतिबिम्ब भी नहीं झेल पात हों? Though it is an Excellent sarcasm, but I cant help feeling sorry and sad for this situation.
ReplyDelete:):) जी, बिलकुल सही कहा आपने, स्थिति यही है कि आसमान से गिरा और खजूर में अटका :)
Deleteआपने एक तक़लीफ़देह कहानी की बेहतरीन समीक्षा की है, कोकिला, अनेक धन्यवाद!
A sensitive reader who 'feels' is bound to be sad and sorry on this..and I guess it indicates that I've been successful in presenting a long and torturous saga in a couple of lines! Thanks loadz again, Kokila:)
:)
Deleteबहुत गहरे अर्थ लिए हुए रचना.
ReplyDeleteआप जैसे क़द्रदानों का साथ मुझे उत्साहित करता है:)
Deleteकोशिश करता रहूँगा, प्रेरणा के लिए धन्यवाद राजीव:)
Thank you:)
ReplyDeleteprofound ..deep seated and superbly presented
ReplyDeleteGlad you liked, Shams:) Thanks bro:)
Deleteये देख कर
ReplyDeleteकि इतने अनुशासित रेवड़ की
सारी भेड़ें नितान्त अन्धी थीं ;
सबसे आगे चलने वाले
उनके नेता ने
काला चश्मा भी पहना हुआ था!------adbhut ----
अच्छा लगा कि आपको पसंद आया:) धन्यवाद, रजनी:)
Deletesamooh ki anokhi mansthithi ----follow the leader !!!
ReplyDelete:):)
Deleteइतने गहरे शब्दों में छुपी वेदना को महसूस करना , उसे व्यक्त करना आसान नहीं होता ! बेहतरीन अभिव्यक्ति अमित जी
ReplyDelete..और फिर उस अभिव्यक्ति को समझना भी तो आसान नहीं है, भाई योगेन्द्र...
Deleteबहुत खुश हूँ कि आपने समझा और सराहा:) धन्यवाद:)
सत्य का सबके समक्ष आना मुश्किल है और किसी तरह तमाम कोशिशों के बावजूद सत्य स्वयं को उजागर करे भी तो उसे देखने समझने वाले कितने हैं।यहाँ तो "अंधेर नगरी चौपट राजा......।
ReplyDeleteकहीं नजर कहीं निशाना।
अनेक दशाओं को सम्बोधित करती आपकी रचना।
जो जिधर से देखना चाहे वहीँ फिट।
क्या कहने, बस वाह!!!!
मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है सुधा:)
Deleteकविता पसंद करने के लिए धन्यवाद!
आती रहिएगा..
Great words & apt images.
ReplyDelete"Kaala Chashma" rocks :)
:) "Kaala chashma" absolutely rocks:)
DeleteAnd I wish it always does:)
All the best Anita:) and thank you too:)
Very nice.
ReplyDeleteThank you for liking it, Rajesh:)
DeleteIts deep and strong, loved it.
ReplyDeleteGlad you noticed the depth and strength, Jyotirmoy:) Thank you dear:)
Deleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा आज रविवार (22-01-2017) को "क्या हम सब कुछ बांटेंगे" (चर्चा अंक-2583) पर भी होगी।
ReplyDelete--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आदरणीय शास्त्री जी, आभार!
Deleteज़रूरी होता है अपनी सोच को मुखरत करना ऐसे में ... वरना आसमान से गिरा ...
ReplyDeleteबिलकुल सही! धन्यवाद दिगम्बर जी:)
DeleteBahut hi satik!
ReplyDeleteThank you Mridula:) Glad you liked:)
Deleteबहुत खूब अमितजी! दो तीन बार पड़कर मज़ा लिया!
ReplyDeleteIt gives me immense pleasure, Rajeev, when non-Hindi speaking friends like my work too:)
DeleteThanks a lot dear:)
परिवेश को आइना दिखाता धारदार व्यंग.
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है..
Deleteपसंद करने के लिए धन्यवाद यादव जी:)
आते रहिएगा..
अमित जी, आज-कल के केकड़ा प्रवृति एवं भेड़-चाल पर आधारित एक सुंदर व्यंग लिखा है आपने।
ReplyDeleteपसंद करने के लिए धन्यवाद राकेश:)
Deleteउन मोटे केकड़ों और अंधी भेड़ों से ज्यादा सावधान, काला चश्मा लगाई भेड़ से होना होगा।
ReplyDeleteक्या वो वाकई अंधी है?
हाँ भई, बात बहुत ज़बर्दस्त है आपकी!
Deleteअसली डर तो इसी का होना चाहिए...
एक नए दृष्टिकोण के लिए धन्यवाद, मनीषा:)
बहुत बढ़िया... जबरदस्त लिखा है अपने ।
ReplyDeleteHindi Love Shayari